कविता ॥ मेरे रहबर ॥
कविता ॥ मेरे रहबर ॥ रचना_ उदय किशोर साह मो० पो० जयपुर जिला बांका बिहार 9546115088 जब चली जाओगी तुम मुझसे युँ रूठकर जी ना पाओगी तुम भी मेरे बिन मेरे अजीज रहबर अश्क बहाती रहेगी तेरी ये आँखें तेरी नजर लौट कर आओगी झ्क दिन मेरे पास मेरे अजीज दिलबर भूल पाओगी ना कभी मुझे तुँ ये मेरा पावन सा शहर याद आयेगी तुम्हें पल पल मेरी नगर का ये डगर कैसे बितेगी सूनी रात तेरी मेरी बॉहों के बगैर सो ना पाओगी अकेली मेरे ही तरफ होगी तेरी बोझिल नजर हर आहट पे चौंक जाओगी मेरे मासुम हम सफर रो रो कर गुजर जायेगी रात की सारी पहर भीग जायेगी अश्क से तकिया टुट जाओगी तुँ इस कदर ढुँढ ना पाओगी भीड़ में मुझे मेरे रहगर जिद ना कर जुदा होने की तुँ अब रह रह कर कैसे जियोगी मेरे बिन बता दो मुझे मेरे दिलबर समझाऊँ मैं कैसे तुम्हें मेरे हमसफर ना तोड़ो मोहब्बत को ये नाजुक है मेरा ये जिगर। उदय किशोर साह मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार 9546115088