शीर्षक - है समर शेष अब मेरा

 शीर्षक - है समर शेष अब मेरा



है   समर    शेष   अब  मेरा,

कुछ क्षण  विशेष  अब मेरा, 

मैं   आती    देख    रही   हूं, 

संध्या   किरणों  का  सवेरा, 

है   समर   शेष   अब  मेरा।

हाथों  में   मेरे  जो  पात्र  है, 

कुछ  देना  उससे  आज  है, 

संचय    करके    जो   रखा,

उसे मांग  रहा  अब  अंधेरा, 

है   समर   शेष  अब   मेरा।

दे  करके   आज   चलूं   मैं,

जो   जीवन   शेष  है   मेरा,

क्यों  व्यर्थ  गवाया  इसको, 

अब   पूछ  रहा   मन   मेरा, 

है   समर   शेष   अब  मेरा।

है   तिमिर   भी    मुस्काता, 

मुझको   ही  पास   बुलाता, 

आंचल   के    अपने    तारे, 

क्यों मुझको वह दिखलाता, 

क्षण - क्षण है  भंगुर जीवन, 

यह सत्य है  किसने बिखेरा,

है   समर   शेष   अब  मेरा।

दुख से  बोझिल जो  आंखें, 

उसे  कुछ  प्रकाश दे  जाऊं, 

करुणा  का मान  बढ़ा  कर, 

सुख  जीवन   का  मैं  पाऊं,

है  समर   शेष   अब   मेरा।

संध्या      बेला    में      मैंने,

राजीव  को  मुस्काता  देखा,

कुछ  क्षण, मैं  सोच में  बैठूं, 

अब   लंबी   नहीं   है   रेखा,

है  समर   शेष   अब   मेरा।

पर  जो  कुछ भी जितना है, 

उसको   नहीं   व्यर्थ गंवाना, 

अंजुली  में  सागर  भर  कर, 

अब   मुझको  है  पी  जाना,

दीन  -  दुःखी    को   समझूं ,

उन    पर   मैं   स्नेह  लुटाऊं, 

हैं    वही  ' ईश '  अब    मेरे,

यह    बात   तुम्हें   बतलाऊं,

एक  सत्य  को  जाना   मैंने, 

तुझको       पहचाना     मैंने,

मेरी  समझ  में  उतरा  तू  है, 

हुआ   मुझमें    तेरा    बसेरा, 

है   समर   शेष    अब   मेरा, 

है    समर    शेष  अब  मेरा।




अंजनी द्विवेदी,वरिष्ठ कवयित्री व 

शिक्षिका,नवीन फल मंडी,अगस्त पार रोड,देवरिया-उत्तर प्रदेश

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