शीर्षक- बिन साजन जब सावन आए

 शीर्षक- बिन साजन जब सावन आए



व्याकुलता    की    परिधि   में,

इन आंखों  का  हाल  न  पूछो।

बिन बादल के  बरस  रही  जो,

ऐसा   वर्षा   काल   ना   पूछो।

गवने की  उस नई  दुल्हन  की,

चूड़ी, बिंदी, लाली ,कंगन  की।

भयभीत हृदय नयन व्याकुल है,

परिजन  से  उस  बिछड़न की।

आंखें    रोए   मन    हर्षित   है,

ऐसा तुम  जय  माल  ना पूछो।

खिले कुसुम  हरियाली हो गई,

कोयलिया   मतवाली   हो गई।

जो      बिछड़े   प्राणनाथ   तो,

विरह में गोरी  काली   हो  गई।

बिन साजन  जब  सावन आए,

उसमें  मन का  हाल ना  पूछो।

प्रेम   साज   सुहाग   समर्पित,

भारत  माता  पर सब  अर्पित।

कंत   जो   पाए  वीरगति   तो,

उस पर भी है  मैंने यह गर्वित।

वह   वीर   वधू   भारत  की  है,

उससे  को ई  सवाल  न  पूछो।

बिन  बादल  जो  बरस  रही हैं,

ऐसा   वर्षा   काल    ना  पूछो।




कामिनी मिश्रा,प्रतिष्ठित  साहित्यकार व शिक्षिका,प्रतिष्ठित प्रा0वि0-लालमणि खेडा, बीघापुर-उन्नाव,उत्तर प्रदेश

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