कविता ॥ विश्व की उद्यान ॥
कविता ॥ विश्व की उद्यान ॥
रचना _ उदय किशोर साह
मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार
9546115088
बहुत हो चुकी नफरत की खेती
विश्व के इस उद्यान में
प्रेम की बदली अब तो बरसो
दुश्मनी के रेगिस्तान मे
मार काट से उजड़ रही मानवता
शांति हुआ शर्मसार है
बारूदी ढेर को कह दो अलविदा
अय बुद्धिजीवी वर्ग संसार के
युद्ध प्रहार व विजय पताका
इतिहास में सब बेकार है
खून से रंगे जो अतीत के पन्ने
कुछ भी गया नहीं साथ है
जन कल्याण की फसल उपजाओ
सींचों विश्व चमन को प्यार से
खून खराबा बन्द करो अब
ओ रसूखदार संसार के
भाईचारा से महक जाये यह गुलशन
बयार बहे अब प्यार के
गोली बंदूक की होड़ मिटा दो
फूल खिले अब प्यार के
दोस्ती का सब कोई हाथ बढ़ाओ
विश्व बंधुत्व की जुगाड़ में
वैमनस्यता व बैर भाव को
रूखसत हो इस संसार से
जीयो और जीने दो जग को
धरती सबकी है सब यार हो
प्रेम भाव उपजाओ जग में
सुख शांति की बह जाये बयार हाे।
उदय किशोर साह
मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार
9546115088
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