शीर्षक-बिना आत्मीयता के

 शीर्षक-बिना आत्मीयता के



स्त्री चाहती है

कि उसे सुना जाए

पुरुष चाहता हैं

कि उसका ध्यान रखा जाए

विवाद के जब कारण बनते है ना

तो स्त्री शिकायत में कहती है

तुम सुनते नही हो मेरी

पुरुष शिकायत में कहता है

तुम मुझ पर ध्यान नहीं देती हो

रोज़ रोज़ की इसी घिटपिट में

दोनो ढल जाते है कुछ ऐसे

स्त्री रहने लगती है मौन

और पुरुष रहने लगता है व्यस्त

स्त्री का प्रेम डूबने लगता है

मौन की गहराईयों में

पुरुष खोने लगता है प्रेम को

भीड़ में,व्यस्तता में

हां किसी मोढ़ पर यदी पुनः दोनों

सजग होकर लौट पाऐं वापस 

तो ठीक हैं वरना,

बिगडा़ हुआ तालमेल,असंतुलन,असुरक्षा

की वज़ह से

गुज़र जाता हैं वक्त यूँहीं दोनों का

प्रेम की आड़ में रहकर 

अलग अलग बस दिखावें मात्र में,

इस तरह जीकर ना जाने कैसे

बीत जाती है उम्र यूँहीं 

दोनों के रिश्ते की जीवन भर,

ना जाने कैसे?

बिना आत्मीयता के ।




दिव्या सक्सेना,वरिष्ठ साहित्यकार 

कलम वाली दीदी,इंदौर मध्य प्रदेश

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