शीर्षक- होली
शीर्षक- होली
प्रीति के रंग में उमंग सजा प्रिये,
भंग के संग है लुभाए ये होली।
हिय में तरंगे उठाये कई प्रिये,
अंग अंग ग़ुलाल लगाए ये होली।
भंग के उमंग में झूमें सदाशिव,
संग गौरा ग़ुलाल उड़ाए है होली।
कान्हा की वंशी राधा धुन गाए,
प्रीति की रीति सिखाए ये होली।
टेसू फुले और मंजरी महके,
महुये की गंध लुभाए ये होली।
राग विराग के रंग रगा प्रिय,
फागुन में फाग सुनाए है होल।
गावो रे फगुआ ग़ुलाल लगाओ,
कोई चुनरिया न रह जाये कोरी।
प्रेम बढ़े हो भाई चारा सभी में,
प्रीति की ज्योति जलाये ये होली।
नीरजा बसंती,वरिष्ठ कवयित्री व शिक्षिका,
स्वतंत्र लेखिका व स्तम्भकार,रुस्तमपुर-
गोरखपुर-उत्तर प्रदेश
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