शीर्षक-होली
शीर्षक-होली
खेलो हमारे संग होली,
आओ रे मिलके हमजोली।
आया फागुन माह सुहाना,
चलेगा अब न कोई बहाना।
एक एक को ढूँढ के रसिया,
पकड़ पकड़ के रंग लगाना।
अरे भीगी रे चूनर चोली,
आओ रे मिलके हम जोली।
लाल हरा नीला पीला है,
अंग अंग मेरा गीला है।
पर है इन रंगों से पक्का,
प्रेम रंग बड़ा चटकीला है।
दिल पे बनाए रंगोली,
आओ रे मिलके हम जोली।
छलिया ने पकड़ी कलाई,
युक्ती कोई काम न आई।
ग्वाल सखा से घिर गयी राधे,
होली खेलें कृष्ण कन्हाई।
सब मिलि करें ठिठोली,
आओ रे मिलके हम जोली।
राधे बोली मोहे रंगदे संवरिया,
तन मन संगरंग मोरी चुनरिया।
प्रीत का रंग कबहूँ नहीं छूटे,
धोबी धोए चाहे सारीउमरिया।
समझ न मोहे बड़ बोली,
खेलो रे मिलके हम जोली।
बूढ़ा जाड़ा लेत विदाई,
बगियन में महकी अमराई।
कली कली पर यौवन उतरा,
बहकी चाल चले पुरवाई।
लागे धरा बड़ी भोली,
आओ रे मिलके हम जोली।
पुष्पलता लक्ष्मी,वरिष्ठ गीतकार कवयित्री
व शिक्षिका,स्वतंत्र लेखिका व स्तम्भकार,
रायबरेली-उत्तर प्रदेश
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