शीर्षक - इसीलिए मेरे दुश्मन बहुत है

 दिनांक 19/08/022(शुक्रवार)

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शीर्षक - इसीलिए मेरे दुश्मन बहुत है


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मैं करता नहीं सौदा कभी किसी से,

अपने उसूलों और नियमों का,

बदलता नहीं हूँ कभी अपने वादे से,

कभी किसी लालच में आकर,

इसीलिए मेरे दुश्मन बहुत है।


आज सुखी है मेरे मित्र,

और जमा चुके हैं अपनी जड़ें,

बना चुके हैं अपनी हवेलियां,

मनाते हैं रोज वो जश्न,

क्योंकि बेच दिया है अपना धर्म,

इसलिए उनके पास रुपये बहुत है,

क्योंकि मैंने बेचा नहीं अपना ईमान,

इसीलिए मेरे दुश्मन बहुत है।


मैं नहीं रहा कभी बनकर दीवाना,

किसी की खूबसूरती और दौलत का,

किसी की मोहब्बत के आगोश में रहकर,

नहीं जोड़े अपने हाथ कभी भी मैंने,

इसीलिए मेरे दुश्मन बहुत है।


फिर भी मैं बहुत खुश हूँ ,

हारकर भी जीत गया हूँ मैं,

घबराता नहीं इन पहाड़ों से,

टूटा नहीं हूँ हवा की गर्म लपटों से,

फिर भी पहुंच गया क्यों मैं मंजिल,

इसीलिए मेरे दुश्मन बहुत है।





शिक्षक एवं साहित्यकार-

गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद

तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

मोबाईल नम्बर- 9571070847

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