लक्ष्मण रेखा
लक्ष्मण रेखा
**********
खींच डाली है, खुद ही के लिए,
एक लक्ष्मण रेखा,
जब सांसारिक मोह और स्वार्थ को,
निकट से देखा!
मित्रों भाईयों बहनों और परिजनों को,
करता हूं प्रेम अपार,
इनके बिना , निस्संदेह,
जीना है दुश्वार।
परस्पर सहयोग और समर्थन से,
जीवन्त है व्यवहार,
इनके हित, मेरे हितों के साथ,
जुड़े हैं नेक विचार।
किन्तु, यह भी सच है,
अलग अलग गुणों से युक्त हो,
हम, सब हैं लाचार,
सबकी अलग अलग शैली है,
अलग अलग संसार!
हस्तक्षेप न हो , निजी मामलों में,
करते हैं प्रतिकार!
अपनी अपनी खिचड़ी पकाते,
जब सबको, मैंने देखा,
अपने जीवन में , खींच ली मैंने,
एक अमिट स्याही से, लक्ष्मण रेखा!
स्वरचित एवम् मौलिक रचना
पद्म मुख पंडा वरिष्ठ नागरिक
ग्राम महा पल्ली जिला रायगढ़ छ ग
@all rights reserved
Comments
Post a Comment