शीर्षक-शिव वंदना
शीर्षक-शिव वंदना
त्रिकालदर्शी चंद्रशेखरे,महाकाल अंतर्यामी
तुम संसार में हो व्याप्त, हे जग के स्वामी
पी कर के विष प्याला, नीलकंठ कहलाये
कैलाश विराजे तुम,उमा पति हो कहलाये
हे जग के रखवाले, नंदी हैं तुमको प्यारे
नही कोई तुम बिन, तुम्हीं हो हमारे सहारे
किये जब पुनर्विवाह, शिवरात्रि है कहलाई
तब ब्रह्मा, विष्णु ने, तुम्हारी महिमा है गाई
सौराष्ट्र पधारे तुम, सोमनाथ हो कहलाये
वसे उज्जैननगरी, तब महाकाल कहलाये
मिटाई राम की विपदा,तब रामेश्वर प्रगटाये
बने राम सहायक ,वहाँ रामेश्वरम कहलाये
भयो कृष्ण जन्म ,वहाँ जोगी बनकर आये
दर्शन तृष्णा लिए, फिर कृष्णा को रुलाये
कहत जसोदा माई, तुम जोगी कैसे आये
खेलत लला रुलौ, कैसी भिक्षा लेने आये
जन्मे इस कलयुगे, गुरु गोरख नाथ दर्शाये
दिया उद्देश्य जग में, बने दुखियों के सहाये
अनुकंपा करो मुझपे,हे जग के पालन हार
मैं अरुण आप से, विनती करते वारम्बार
रचनाकार-कवि अरुण चक्रवर्ती
गुरसहायगंज कन्नौज उत्तर प्रदेश
मो.9795718204
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