"बेरंग जिंदगी"*

 *"बेरंग जिंदगी"*



  कच्ची उम्र में यदि किसी युवती के पति का देहांत हो जाता है तो उसका पूरा जीवन नर्क बन जाता है। उसकी रंगो भरी जिंदगी बेरंग हो जाती है। उसकी जिंदगी को बेरंग बनाने के लिए जिम्मेदार समाज है। समाज में न जाने कितनी कुरीति और कुप्रथाएँ सदियों से चली आ रही हैै, जिसके कारण उनकी जिंदगी बेरंग है।

   असमय जीवन साथी का साथ छुट जाना बहुत दुःख की बात होती है। इस समय उसे संभाल पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। दूसरी सबसे बड़ी दुःख की बात है, समाज में बनाया गया नियम। जो जिंदगी को और कष्टमय बना देता है। किसी भी युवती के विधवा होने पर उसे सफेद कपड़ा पहनाना या पहनने के लिए कहना। चूड़ी, बिंदी, पायल कुछ भी पहनने के लिए मना करना। उसके सारे श्रृंगार को उतरवाना। कोई भी श्रृंगार न करने की बाध्यता, कहीं भी आने-जाने की बाध्यता, किसी भी शुभ कार्य में उन्हें शामिल न करना, यदि किसी शुभ कार्य में शामिल हो जाए, तो उसे अछूत मानकर अपमानित करना, उसे पूजा स्थल व पवित्र स्थल से दूर रहने के लिए कहना, पूजा या विवाह या किसी शुभ कार्य के लिए लाए गये किसी भी सामग्री को हाथ न लगाने के लिए कहना, यदि गलती से हाथ लगा दे, तो उसे अपवित्र मानकर उसका उपयोग न करना। ये सब एक विधवा के लिए समाज में बनाए गए कुरीति हैं, जो उस युवती को बार-बार यह याद दिलाती है कि वह विधवा है और उसकी जिंदगी बेरंग है। न तो वह श्रृंगार कर सकती है और न ही अच्छे रंग-बिरंगे कपड़े पहन सकती हैं। वह अंदर ही अंदर घुटती रहती है और अपने आपको कोसती रहती है कि वह युवती क्यों है? वह मायूस और निराश रहती है। हर पल यहीं सोचती रहती है कि वह ज़िंदा क्यों है? उसे मौत क्यों नहीं आती? उसके जीने की इच्छा समाप्त हो जाती है।

    विधवा स्त्री के पुनर्विवाह के लिए भी समाज में लोग नहीं सोचते हैं, इसलिए,, क्योंकि उसकी जिंदगी बेरंग हो गई है, लेकिन उसकी जिंदगी को बेरंग बनाने वाले भी तो वहीं सामाजिक लोग हैं और उनकी मान्यताएँ हैं। यदि किसी युवक की पत्नी का देहांत हो जाता है तो उस युवक पर कुछ ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता है, इसलिए,, क्योंकि उनके लिए समाज में कठोर नियम नहीं बनाए गए हैं। किसी अपने को खोने का गम तो होता ही है, किंतु कुछ समय के बाद वे उन दुःख भरे पलों को भूलकर सामान्य जिंदगी व्यतीत करते हैं और एक या दो साल के बाद उनका पुनर्विवाह भी कर दिया जाता है। 

   युवकों की तरह युवतियों के लिए क्यों नहीं सोचा जाता। यदि कोई विधवा युवती साज-श्रृंगार करने लगे, तो क्यों उस पर रोक-टोक किया जाता है। क्या वे इंसान नहीं हैं? क्या उनकी खुशी, खुशी नहीं?क्या उन्हें खुश रहने का कोई अधिकार नहीं है? हमारे समाज में युवक और युवतियों के लिए कितनी असमानताएँ हैं। इन असमानताओं के कारण ही उनकी जिंदगी बेरंग है। उनके पहनावे-ओढ़ावे, बातचीत, आने-जाने हर एक चीज के लिए उन्हें रोक-टोक होती है। आखिर वे कब तक बेरंग जिंदगी जीते रहेंगी?


-द्रौपदी साहू

छुरी कला, कोरबा, छत्तीसगढ़

Comments

Popular posts from this blog

स्योहारा।आज ग्राम चंचल पुर में उस समय चीख पुकार मच गई जब बारातियों को ले जा रही एक स्कार्पियो कार की यहां एक खंबे से टक्कर हो गई और कार के परखच्चे उड़ गए।

मालगाड़ी की चपेट में आकर हुई युवक की दर्दनाक मौत