मॉं तुलसी
*मॉं तुलसी*
राक्षस कुल में जन्मी वृंदा बनी पुजारिन
बचपन से करती थी श्री विष्णु की पूजा
दानवराज जांलधर से व्याह रचाकर
पतिसेवा कर वृंदा बनी पतिव्रता
एकदा युद्ध छिडा़ दानवों और देवों में
पति की जीत के लिए वृंदा करती अनुष्ठान
वृंदा के जप-तप से जालंधर होता विजयी
जांलधर की विजय देख देवता होते हैरान
करबद्ध निवेदन देवता करते श्री विष्णु से
श्री विष्णु कहते वृंदा है मेरी परम भक्त
वृंदा से मैं नहीं करुंगा छल मेरी पुजारिन
देव कहते दूसरा उपाय नहीं, आप ही करें मदद
श्री विष्णु जालंधर रूप रख पहुंचे वृंदा के महल
जांलधर रुप में देख विष्णु को वृंदा का टूटा संकल्प
अनुष्ठान न पूरा हुआ युद्धभूमि में दिखा असर
देवताओं ने जालंधर का सिर किया धड़ से अलग
जालंधर का कटा शीश देख वृंदा होकर व्यथित
सोचती जिसका किया मैने स्पर्श, है ये कौन ?
अपने संग छल हुआ देख दे दिया श्री विष्णु को श्राप
पत्थर होने का श्राप शिरोधार्य कर, प्रभु हुए मौन
देख विष्णु को पाषाण बन, मां लक्ष्मी लगीं रोनें
वृंदा ने शाप विमोचन कर ,हो गयीं वहीं सती
वृंदा की राख से एक प्यारा सा पौधा निकला
*श्री हरि विष्णु* ने नाम रखा प्यारा *तुलसी*
श्री हरि विष्णु ने तभी लिया एक संकल्प
बिन *तुलसी पत्र* मैं न स्वीकारुंगा भोग
मेवा मिष्ठान छप्पन भोग तुलसी पत्र बिन अधूरा
घर आंगन में खुशबू बिखेरती मिटाती शोक रोग
*एकता गुप्ता *काव्या*
उन्नाव उत्तर प्रदेश
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