कुंडलिया सृजन शब्द 💐चलते चलते💐

 कुंडलिया

सृजन शब्द 💐चलते चलते💐



चलते चलते याद हो, ढलते  सुबहों  शाम।

 सूरज छिपता जा रहा,करने दो आराम।।

  करने दो आराम, समय ने सीमा बांधी।

  तपिश बढ़ी फिर आज, लगे तो आये आंधी।।

   कहे प्रिया अब मान, उम्र कह ढलते ढलते।

  जल्द बुढ़ापा पीर , बना दुख  चलते चलते।।


चलते चलते थामना, अगर किसी का हाथ।

 जीवन लंबी दौड़ है, ख़ुशी मिले जो साथ।।

ख़ुशी मिले जो साथ, रहे तो खूब निभाना।

 अंतर मन को साध , नही तुम नीर बहाना।।

 प्रिया  चैन ख़ो हाथ, रही अब मलते मलते।।

  करे उधारी सांस , थके जो चलते चलते।।


चलते चलते रात ने, तारों से की बात।

हृदय छुपा जो प्रेम था, जाहिर हो जज्बात।।

 जाहिर हो जज्बात, लगाता चंदा फेरा।

चमन लगे खिल फूल, रंग का लगता घेरा।।

  प्रिया निभाती रीत, प्रेम में पलते पलते।

 पाती देखो मान, धर्म पे चलते चलते।।



प्रियदर्शिनि राज

जामनगर गुजरात

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