जिद प्रवृति नहीं
जिद प्रवृति नहीं
अयाचित उपहार है स्त्रियों का
जिससे वो बचाना चाहती हैं
खुद को
तुझमे थोड़ा थोड़ा
वो संभाल लेना चाहती हैं
कई निरर्थक वाक्यों से
एक सार्थक शब्द ।
रोपना चाहती हैं
उसर और बेतरतीब
जगह पर कुछ सुघड़ता।
बांटना चाहती है
हठ के भीतर पसरी कोमलता।
वो जिद से ही
भंग करती हैं
सन्नाटों की तन्द्रा
पर जब भी तुम
घोर महत्वकांक्षी बन
नजरअंदाज करते हो उनकी जिद
तो फिर जिद नहीं करती स्त्रियां
करती हैं तो केवल स्वयं से
एक अवगुंठीत युद्ध।
और तब भी खुले रहते हैं
उनके उद्भट हृदय द्वार
जिसमें प्रवेश लेती है
तुम्हारी इच्छायें
तुम्हारी सुरक्षा
तुम्हारी आत्ममुग्धता
बस नहीं प्रवेश कर पाते,
तो केवल तुम।
क्षमा शुक्ला
औरंगाबाद-बिहार
Comments
Post a Comment