आज बाबा क्यू इंतजार नहीं किए मेरा (संस्मरण)*

 *आज बाबा क्यू इंतजार नहीं किए मेरा (संस्मरण)* 



        13 फरवरी 2020 की आखिरी मुलाकात मैं लखनऊ में था, पता चला पूर्व शिक्षा और चिकित्सा मंत्री उत्तर प्रदेश सरकार ओमप्रकाश श्रीवास्तव बाबा (जिन्हे बाबा कह के बुलाया आजीवन मैने, बाबा के कारण ही मैं और मेरा परिवार पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी के करीब रहा है।)  लखनऊ में है। तुरंत बाबा को फोन मिलाया बाबा मिलना है आपसे बोले आ जाओ, एड्रेस नहीं था बाबा 90 साल की उम्र में मुझे, कभी ऑटो वाले को बार बार पता बता रहे थे। जैसा तैसे पहुंचा दोपहर के 2.30 के आस पास। पहुंचते ही बाबा ने कहा अंकुर बैठो खाना खा लो, मैने कहा बाबा मैंने खा लिया है। अंदर से बुआ (उनकी बेटी) की आवाज आई की बाबू जी भी नहीं खाएं अभी तक, बोले अंकुर आ रहा है साथ में खायेंगे। मेरे आखों में आसूं भर गए बाबा का प्रेम देख की जो आदमी देश के तीन तीन प्रधानमंत्री के करीब रहा हो और 90 साल में मेरा इंतजार , अपनी गलती पर अहसास कर बैठ गया, बाबा के साथ खाना खाने। उसके बाद हाल चाल बाबा का राजनीतिक स्मरण (इंजिनियरिंग समय में भी जब पता चलता बाबा जौनपुर में है और क्लास नहीं चलता तो निकल लेता बाबा के यहां  चाय के साथ बाबा की बातें सुनने)। फिर कुछ देर बाद बाबा को बोला आशीर्वाद दे बाबा खुद अंदर गए एक किताब लाए उसपर मेरा नाम लिख डेट और तारीख के साथ ऑटोग्राफ देकर कहे जाओ अब ये आशीर्वाद है मेरा। जाते जाते बोला आजीवन बाबा ही कहा मुझे भी पौत्र का धर्म निभाने दे, अब नौकरी करता हूं। कुछ देना चाहा बाबा बोले मुझे पेंशन मिलती है मैने  बोला पौत्र हूं आपका।

         विगत सप्ताह पता चला बाबा लखनऊ से जौनपुर आए है, उनके पुत्र मनोज चाचा से जानकारी होती रहती थी बाबा के बारे में। मनोज चाचा को बोला मैं छुट्टी आने वाला हूं बाबा से मिलने आऊंगा। कल 31 अगस्त को ही जाना था पर कुछ परिवार में विवाद की हालत होने पर नहीं जा सकता । आज सुबह 6.30 बजे मनोज चाचा को फोन किया की दोपहर तक आ रहा बाबा को मिलने फिर उसके तुरंत बाद अपने गृह जनपद जौनपुर के बड़े स्तर के साहित्यकार बड़े भाई रंगनाथ दुबे भैया को फोन किया भैया बाबा के यहां आ रहा आपके यहां भी आऊंगा (एक ही कालोनी में मकान है बाबा और भैया का)। भैया बोलें आओ और साथ चलेंगे दोनो नेता जी के यहां। फिर तैयार होकर गाड़ी की प्रतीक्षा कर रहा था की पापा जौनपुर जा रहे है साथ मैं भी निकल लेता हूं। इतने में रंगनाथ भैया का फोन आया अंकुर नेता जी नहीं रहे पहले तो भरोसा नहीं हुआ, तुरंत मनोज चाचा को फोन किया बोले है अभी-अभी...... सुनते ही आवक हो गया और दिल कोसने लगा काश पारिवारिक विवाद को छोड़ कल चला जाता बाबा से मिलने। फिर कहता हूं की बाबा उस दिन लंच के लिए अपने मेरा इंतजार किया की अंकुर आ रहा साथ में खाऊंगा आज क्यू नहीं बाबा ने इंतजार किए मेरा।

          सच कहूं ओमप्रकाश बाबा जैसा साधारण , मिलनसार, ईमानदार, व्यवहारिक इंसान कम देखने को मिलते है। पूरा जीवन बेदाग और ईमानदार रहें ओमप्रकाश बाबा। बाबा से तो स्कूल टाइम में हीं मैंने मानवीयता, स्वाभिमानी, अटलता सीखा।

      आज बाबा के यहां कुछ लोगो के साथ मैं पापा बाबा की बात कर रहे आखें छलक पड़ी की हमने एक अभिभावक खो दिया अपना । मुझे यूपी ही नहीं कर्नाटक और महाराष्ट्र में भी बाबा के नाम और बाबा के कारण राजनीतिक हस्तियों का सम्मान मिलता रहा। ओमप्रकाश बाबा आज भौतिक रूप से मेरे साथ नही है पर उनके सिखाए आचरण एवं स्वभाव सदैव मेरे साथ रहेंगे।अपने नम्र आंखों से बाबा के चरणों में प्रणाम करता हूं। आजीवन याद रहेंगे बाबा आप।


(कल 31 अगस्त की एक पिक बाबा की लगा रहा , जिससे कह सकते है की लगा ही नहीं की बाबा इतनी जल्दी......उम्र के 92 सालों तक बाबा ने लोगों की सेवा की कभी अपनी सेवा करने का मौका किसी को नही। दिया, आज ये बात  भारत यात्रा ट्रस्ट के ट्रस्टी सूर्य कुमार चाचा कह रहे थे मुझे जो काफी हद तक सच है।) 

    *नमन बाबा के चरणों में*

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