गीत
गीत
क्या प्यार इसी को कहते हैं...?
चंचल ऑंखें शरमाती हैं फिर पलकें भी झुक जाती हैं।
मन प्राण मौन से रहते हैं।
क्या प्यार इसी को कहते हैं?
सब शिथिल अंग हो जाते हैं। भीतर से हम सकुचाते हैं।
मन में कुछ सपने पलते हैं।
क्या प्यार इसी को कहते हैं?
कोमल तन -मन संकल्प किये। जग से लड़ने का ठान लिए।
बस पीर उन्हीं की सहते हैं।
क्या प्यार इसी को कहते हैं?
उनको ही सब कुछ मान लिया। भीतर तक उनको जान लिया। जब भेद भाव सब ढहते हैं।
क्या प्यार इसी को कहते हैं?
देखे बिन उनको चैन नहीं।
एक दूजे बिन बेचैन कहीं।
यादों में आँसू ढरते हैं।
क्या प्यार इसी को कहते हैं?
सौ जुर्म जमाने के सहते।
अपनी मस्ती में ही रहते।
कभी रोते और कभी हँसते हैं
क्या प्यार इसी को कहते हैं?
स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित।
वीरेन्द्र कुमार मिश्र "विरही"
ग्राम. विन्दवलिया
पोस्ट. नोनापार
जिला. देवरिया, यूपी.।
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