कविता ॥ बारूद की ढ़ेर पर संसार ॥

 कविता ॥ बारूद की ढ़ेर पर संसार ॥


रचना ॥ उदय किशोर साह ॥

मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार


बारूद की ढ़ेर पर बैठा है यह जग

किसी को नहीं इस बात की है परवाह

घूम रहा है सर पर मौत का पहिया

क्यों है मौत का सब को इन्तजार


चल रहा है संघर्ष निरन्तर जग में

एक दूजे को मार कर भगाने की

मानव बम बना मानव का दुश्मन

शांति अमन को जग से भगाने की


कौन समझाये जग बना मूरख

सीमा की पैमाना बढ़ाने की

खतरा दौड़ रहा है जग में

विघ्वंश की तांडव मचाने की


बारूद नहीं है किसी का दुश्मन

समझाओ इनको अय उपर वाला

जब गुस्सा आयेगा बारूद को

फोड़ डालेगा सबका   माथा


गुब्बारे की तरह फूट जायेगा

कुछ ना संसार में रह जायेगा

तेरी हिरफतबाजी में प्यारे तब

जीव जन्तु भी गिर मर जायेगा


फिर क्यूँ मौन है जग वालों तुम

बारूद से अब परहेज करो

बम बारूद को दफन कर देना

जग को बचाने का प्रयास करो


उदय किशोर साह

मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार

9546115088

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