*नई दिल्ली-एम वी फाउंडेशन दिल्ली ( रजि०)*मातृका विवेक स्वराष्ट्र गौरवम*के द्वारा मनाया जा रहा है*
*नई दिल्ली-एम वी फाउंडेशन दिल्ली ( रजि०)*मातृका विवेक स्वराष्ट्र गौरवम*के द्वारा मनाया जा रहा है*
*भव्य संस्कृत सप्ताह दिवस*
*रघुवंशम्: विस्तृत परिचर्चा*
*महाकवि कालिदास विरचितं (१से१९ सर्ग)*तक विद्वान विदुषियों द्वारा परिचर्चा*सभी श्रोताओं को सादर आमंत्रण*
*19 /8/ 2021 से लेकर 25/ 8/ 2021 तक निरंतर यह आयोजन किया गया*
*प्रथम दिवस-प्रथम सत्र में सभी*
*मुख्य अतिथि विशिष्ट अतिथि एवं अति विशिष्ट अतिथि सभी आमंत्रित वक्ता का परिचय एवं*शंख नाद से प्रारंभ *गणेश वंदना सरस्वती वंदना साथ * उपस्थित सभी वक्ता ने अपने अपने* *विचार व्यक्त किए* *संस्कृत सप्ताह में उपस्थित सभी*
*विद्वान विदुषियों ने अपने विचार व्यक्त* *किए और बहुत ही हर्ष के साथ* *कार्यक्रम का प्रारंभ किया गया*सभी बहुत ही प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं*
*इक्ष्वाकु वंश के राजा रघु की अतुल गौरव गाथा का बखान एम वी फाउंडेशन मंच पर विद्वान विदुषियों द्वारा परिचर्चा*
*रघुवंशम्: विस्तृत परिचर्चा*
*भाग १(१-६ सर्ग )*
*भाग २(७-१२ सर्ग)*
*भाग ३(१३-१९) सर्ग*
*नई दिल्ली -एम वी फाउंडेशन रजि०*मातृका विवेक स्वराष्ट्र गौरवम की ओर से महाकवि कालिदास के महाकाव्य*
*'रघुवंशम्-विस्तृत परिचर्चा*
*अंत./राष्ट्रीय अध्यक्ष "प्रीति हर्ष जी" ने बताया इक्ष्वाकु वंश प्राचीन कौशल देश के राजा जिनकी राजधानी अयोध्या थी। राजा रघु अयोध्या के प्रसिद्ध पराक्रमी राजा हुए जिनके नाम पर रघुवंश की रचना हुई। ये राजा दिलीप के पुत्र थे तथा अपने कुल के सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं जिनके अतुल्य पराक्रम के कारण मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी भी अपने को रघुवंशी कहलाने में परम गर्व अनुभव करते हैं। पूरा सूर्यवंश इन्हीं के कारण रघुवंश कहलाने लगा। इन्हीं के नाम पर श्री रामचंद्र जी को राघव... रघुवर.. रघुराज आदि भी कहा जाता है। संस्कृत भाषा सप्ताह के आयोजन का आज द्वितीय दिवस जिसमें रघुवंशम पर परिचर्चा आरंभ की गई है, रेनू मिश्रा'दीपशिखा' के संयोजन- संचालन में सम्पन्न हुई।इस कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि एम वी फाउंडेशन की निदेशक आरती तिवारी सनत जी की गरिमामयी उपस्थिति रही*।
*आमंत्रित वक्ता - डॉ. ऋचा त्रिपाठी बेंगलुरु, डॉ. शरद कुमार वाराणसी, डॉ. उपासना पाण्डेय प्रयागराज* ।
*कालिदास का 'रघुवंशम्' लोककल्याण का सन्देश देने वाला अद्वितीय महाकाव्य है| इसमें उन्नीस सर्गों में ' सूर्य वंश' के अभ्युदय और क्षयोन्मुखता का वर्णन महाकवि कालिदास ने अत्यंत सुन्दरता और विशदता से किया है| 'रघुवंशम्' के उन्नीस सर्गों का आमन्त्रित वक्ताओं ने विस्तृत व मनोहारी चर्चा की| जिसमें रघुवंश द्वारा प्रदत्त महत्त्वपूर्ण सन्देशों को स्पष्ट किया गया*
*डॉ. ऋचा त्रिपाठी ने कहा कि वैसे तो सूर्यवंश का उदय प्रजापति दक्ष के मानस पुत्र राजा मनु से ही प्रारंभ हो जाता है परन्तु पराक्रमी राजा दिलीप के पुत्र रघु के प्रताप, कौशल, सौम्य स्वभाव और प्रजावत्सलता के कारण यह वंश रघुकुल के नाम से प्रसिद्ध हुआ । रघुकुल जैसे कुलीन वंश के महाराज दिलीप ने गौ सेवा कर मनोवांछित फल को प्राप्त किया, जिसका साक्षात् फल रघु जैसे प्रतापी पुत्र को प्राप्त कर रघुवंश की प्रतिष्ठा करना था| वह गौ सेवा तब ही नहीं आज भी उतनी ही प्रासंगिक एवं कामना पूर्ति में सर्व समर्थ है*।
*डॉ. शरद कुमार ने बताया कि 'रघुवंशम्' में राजाओं के कृत्यों के माध्यम से यज्ञ- यागादि का महत्त्व भी प्रतिपादित होता है | यथा -दिलीप ,रघु, अज, दशरथ राम इत्यादि विश्वजीत, पुत्रेष्टि अश्वमेध आदि यज्ञों द्वारा निरंतर सत्कर्म एवं प्रजापालन में रत थे, दान की पराकाष्ठा भी मिलती है* ।
*इसमें विविध यज्ञों के द्वारा प्रतापी राजाओं ने विश्व विजय कर सम्पूर्ण पृथ्वी का ध्रुवीकरण कर एकक्षत्र स्थापित कर एकसमान राज्य- पालन किया । याग-तप के द्वारा प्रकृति संरक्षण तथा दान के माध्यम से सुपात्रों व वंचितों को धन- धान्य का सम्यक् वितरण भी किया गया* ।
*रेनू मिश्रा जी ने १५ वें सर्ग के सार में बताती हैं कि लवणा सुर को मारकर लव को राज्य मिला । इसी तरह सभी भाइयों में समस्त राज्य का सम्यक् विभाजन कर प्रभु श्री राम ने चिरकाल तक राज्य किया ।अंत में यमराज मुनिवेश में उनसे मिलने आए और किसी के प्रवेश न करने की बात कही;नहीं तो मृत्यु दण्ड । उसी समय ऋषि दुर्वासा के आने पर लक्ष्मण को जाना पड़ता है और फिर राम जी को प्रिय का त्याग करना पड़ता है ।लक्ष्मण जी स्वत: ही सरयू में जाकर समाधि लेते हैं ;फिर श्री राम जी भी प्रजा के अनुकरण करते हुए सरयू में जल समाधि ले लेते हैं| इससे सन्देश मिलता है कि जन्म लेने वाले की मृत्यु भी पूर्व सुनिश्चित होती है*।
*डॉ. उपासना पाण्डेय ने बताया कि राजा दिलीप की तपस्या, रघु के पराक्रम और प्रभु श्री राम के अलौकिक व्यक्तित्व से जो यशस्वी वंश दोपहर के सूर्य के सदृश दशों- दिशाओं में प्रखरता से तप रहा था, वहीं ध्रुवसन्धि से व्यसनी और अग्निवर्ण से कामी उत्तराधिकारी के नैतिक और चारित्रिक के कारण विलुप्त हो गया । इस प्रकार कालिदास जी ने इस महाकाव्य के द्वारा यह स्पष्ट सन्देश दिया है कि तपस्या, वीरता, सेवाभाव और त्याग की नींव पर ही राजवंशों के महल टिक सकते हैं; प्रमाद, कायरता, नैतिक व चारित्रिक ह्रास को वे सह नहीं सकते;जर्जर होकर धराशायी हो जाते हैं । राजा कुश के बाद जिन २४ उत्तराधिकारियों का कवि कालिदास ने वर्णन किया है; उनमें से अन्तिम शासक अग्निवर्ण विषय वासना में लिप्त होकर क्षयरोग से पीड़ित हो सिंहासन को सूना छोड़ परलोक गमन कर गया । अंततः उसकी गर्भवती रानी को मंत्रियों के द्वारा सिंहासन पर बिठाकर दीर्घकालीन शासन किया गया*।
रघुवंशम् विस्तृत परिचर्चा में भारत के विभिन्न राज्यों से श्रोता वेबीनार में जुड़े
राजेश त्रिपाठी नीलू जी प्रथम दिवस से अंतिम सप्ताह तक जुड़े रहे, रामेश्वर प्रसाद गुप्ता, डॉ.कवि निर्मल कुमार, विष्णु प्रसाद शर्मा, पद्माक्षि शुक्ल , प्रो. डॉ. विनीत कुमार अग्निहोत्री जी सभी साहित्य प्रेमियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई जैसे-जैसे रघुवंशम विस्तृत परिचर्चा विद्वान विदुषियों के द्वारा व्याख्यान किया जा रहा था उसे सुनकर उन सभी की जिज्ञासा और भी ज्यादा बढ़ गई ।
सभी श्रोताओं ने पुनः इसे सुनने की अपनी इच्छा प्रकट की। प्रो. डॉ. विनीत कुमार अग्निहोत्री जी कार्यक्रम समापन के बाद अंत में स्वयं भी विद्वानों के साथ वार्तालाप की उन विद्वानों ने अभिज्ञान शाकुंतलम् के कुछ श्लोक बोले डॉ. शरद कुमार जी ने गीत रूप में गाकर सुनाया। मंच संचालिका रेनू मिश्रा दीपशिखा जी ने बहुत ही सुंदर क्षमा प्रार्थना स्तुति प्रस्तुत की, अंत में सभी ने एक स्वर में
*श्री राम स्तुति* श्री रामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं ।
नवकंज- लोचन,कंज-मुख,कर -कंज पद कंजारुणं ।।
अंत में मंच की अध्यक्ष प्रीति हर्ष जी ने उद्बोधन दिया।निदेशक आरती तिवारी सनत ने सभी का आभार ज्ञापित किया। मीडिया प्रभारी राजेश त्रिपाठी नीलू जी ने आयोजन की बहुत प्रशंसा की विद्वान विदुषियों को धन्यवाद दिया । वह इस आयोजन में शुरू से अंतिम समापन के दिन तक जुड़े रहे। डॉ.विनीत कुमार अग्निहोत्री जी ने मंच का एवं विद्वान विदुषियों का का धन्यवाद ज्ञापित किया और पुनः ऐसे सुंदर आयोजन के लिए अपनी इच्छा प्रकट की। सभी श्रोताओं ने पुनः धन्यवाद प्रेषित किया। विद्वान विदुषियों को प्रणाम किया।
*रघुकुल वंश के सभी राजाओं को पुनः स्मरण किया, मानसिक रूप से नमन किया ।यज्ञ तप दान आज भी यथा उचित है। पशु पालन गौ सेवा प्राचीन सनातनी परंपरा से ही चली आई है आज भी उतनी ही आवश्यक है*
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