राखी मात्र धागा नहीं

 राखी  मात्र धागा नहीं


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बहनें सिर्फ धागा नहीं बाँधती

वो बाँधती हैं भाई की कलाई पर,

प्रेम का एक बन्धन'

जिसमें  बंध जाता है भाई से,

स्नेह, दुलार,

सिर्फ प्रेमानुराग  की अपेक्षा रखती,

छोड़ दुनिया के उपहार,

बहनें सिर्फ धागा नहीं बाँधती

वो बाँधती हैं,भाई की कलाई पर,

एक रक्षासूत्र 

 जिसमें रक्षित होता है भाई,

और भाई की, कुशलता,साहस, शौर्य,धैर्य ,सम्मान, स्वाभिमान,हर्ष,प्रकर्ष ,

और पहुँचे प्रतिष्ठा की पराकाष्ठा तक,

बहनें सिर्फ धागा नहीं बाँधती

वो बाँधती हैं, भाई की कलाई पर,

दुआओं की मजबुत गांठ

जिसे सहेजती आती हैं ये

मन्दिर, मस्जिद,और गुरुद्वारों  के

चौखटों  से

और साथ में देती हैं ढेरों आशीर्वाद

बहनें सिर्फ धागा नहीं बाँधती

वो बाँधती है भाई की कलाई से,

अपना स्वाभिमान

जिसे और भी गर्वित करे उसका भाई,

आत्मा की ओज, और नयनों की पवित्रता से,

रक्षण दे हर ' स्त्री 'को

और सार्थक कर सके,

इस स्निग्ध रिश्ते की पहचान,

बहनें सिर्फ धागा नहीं बाँधती

वो बाँधती हैं,भाई की कलाई से,

अपना अटूट विश्वास

इस आश के साथ कि 

पीहर का मजबुत स्तम्भ रहेगा वो,

माँ बाबु का सुरक्षित संबल बनेगा वो,

और बहनों के लिये रहेगा एक साथ

माँ बाबुल दोनो

जिसमें पा लेंगी वो

अपना सम्पूर्ण मायका

बहनें सिर्फ धागा नहीं बाँधती,

वो बाँधती हैं भाई से

अपने पवित्र और नि:स्वार्थ प्रेम को


क्षमा शुक्ला 

औरंगाबाद बिहार

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