मंजिल पाने की जिद
मंजिल पाने की जिद
कर लें चाहे जितनी कोशिश,
विपदाएँ मुझे गिराने की।
मेरी भी जिद एक यही है,
अपनी मंजिल को पाने की।
मैंने मन मे ठान लिया है,
श्रम घोर सतत ही करना है।
कैसे भी हालात हो सम्मुख,
पर हमें कभी ना डरना है।
बिना द्वेष के हम यहाँ करेंगे ,
नित कोशिश नया कर जाने की।
मेरी भी जिद एक यही है,
अपनी मंजिल को पाने की।
हाथ की रेखाओं का क्या,
हम कर्म रेख को खीचेंगे।
उद्यम के पावन नीर से हम,
अब सपन स्वयं के सींचेंगे।
नहीं थकेंगे जतन करेंगे,
मरुथल में धार बहाने की।
मेरी भी जिद एक यही है,
अपनी मंजिल को पाने की।
कठिन ठोकरों से क्या डरना,
गिर कर भी है हमें सम्भलना।
शीत तपन हों राहों पर चाहे,
शोलो पर भी हो हमको चलना।
ठान लिया है मन मे अपने,
एक नया मुकाम बनाने की।
मेरी भी जिद एक यही है,
अपनी मंजिल को पाने की।
नहीं थके हैं कदम हमारे,
हिम्मत हमने ना हारी है।
नहीं रुकेंगे मंजिल के पहले,
सफर अभी भी है जारी।
अशोक सदा कोशिश तुम करना,
शोलों पर राह बनाने की।
मेरी भी जिद एक यही है,
अपनी मंजिल को पाने की।।
अशोक प्रियदर्शी
चित्रकूट, उ0प्र0
मो0 नं0 6393574894
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