मां
मां
खून बहा तुम्हारा माँ,
जब मैं होने वाली थी,
फिर भी चेहरे पर तुम्हारे,
दर्द की शिकन पर सवार,
हंसी लहराई थी ्।
पहली किलकारी सुनकर माँ,
तुमने सुकून से आंखें झलकाई थी..
माथे को चूम कर तुमने मेरे,
आंखों से दुआएं बरसाई थी।
नन्हे हाथों पैरों को,
जब तुम छू लेती थी माँ..
सहज अनुभव की राग से,
मन अपना फुलवारी थी |
खुशनुमा थी मैं मां,
तुम्हारे प्यारे हाथों में..
नहीं खबर थी मुझे,
ना कुछ परवाह ,
इस दुनियादारी की ।
शीतल श्रीकांत पांढरे
पुणे, महाराष्ट्र
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