कविता ॥ पीड़ा ॥

 कविता ॥ पीड़ा ॥


रचना ॥ उदय किशोर साह ॥

मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार


जब अपनों से ठोकर खाता हूँ

मन में पीड़ा का अनुभव करता हूँ

फ़िजां का साया घिर जाता है

जीवन पतझड़ सा हो जाता है


अपनों से जब ठोकर खाता हूँ

तब नीरसता मन में पाता हूँ

जीवन एक बोझ बन जाती है

पीड़ा जिगर को दे जाती है


अपनों से जब ठोकर खाता हूँ

जीवन में दुःख ही दुःख मैं पाता हूँ

वीराना सा छा जाता है जग में

जीवन उचाट हो जाता    है


अपनों से जब ठोकर खाता हूँ

अंधेरों में खुद को घिरा पाता हूँ

खुशियाँ जीवन से रूठ जाती है

कहानी की रवानी टुट जाती है


अपनों से जब ठोकर खाता हूँ

जीवन भर रोता ही रह जाता हूँ

विरह की जलजला आ जाती है

जीवन को अवसाद दे जाती है


अपनों से जब ठोकर खाता हूँ

खुशियों को तड़पता हुआ पाता हूँ

हँसी मायुस हो ऑगन में रोती है

दुनियाँ उजड़ ही   जाती।   है


उदय किशोर साह

मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार

9546115088

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