जब हो मन अशांत
जब हो मन अशांत
जब मन अशांत हो तब जिन्दगी भारी सा प्रतीत होता है, जिज्ञासा नहीं बचती कुछ जानने की
मन में चल रहें सवालों से तंग आकर जी करता
हैं वैराग्य धारण कर लूँ
बन जाऊँ मीरा डूब जाऊँ कृष्ण भक्ति में या बन जाऊँ शिव ,आखिर मैंने भी तो अपनों का उगला
जहर पिया है ।या करूँ माँ सती की तरह कठोर तपस्या फर्क बस इतना रहेगा ।माँ सती ने तपस्या
शिव को प्राप्त करनें के लिए की थी, और मेरी तपस्या रहेंगी इस जगत से मुक्ति पाने के लिए ।
माया, मोह,काम, क्रोध सब इसी दुनिया के हैं ।
और इसी दुनिया में छोड़ जाऊँगी, कर लूँ ऐसा वैराग्य धारण कि निकल जाऊँ इस जीवन चक्रव्यूह से बाहर इस क्षणभंगुर काया के लिए पता नहीं कितने ही जतन किये होगे मैंने, अब तो मन को भी तभी तृप्ति मिलेगी जब मन ईश्वर भक्ति में लीन हो जायेगा और पा जायेंगा मोक्ष की प्राप्ति ।
☆निर्मला सिन्हा
☆डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़
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