शीर्षक-प्रश्न
शीर्षक-प्रश्न
जीवन के पथ पर
सूखे पत्तों से बिखरे -प्रश्न
जिज्ञासा की हवाओं पर थिरकते,
भावनाओं के तूफानों में ताण्डव करते,
मेरे मस्तिष्क को विचलित ,
हृदय को उद्वेलित करते,
न जाने क्यों मुझे अपने से लगते हैं ।
हर समय साथ,हर बात पर साथ ..
कुछ सतही जिनके उत्तर भी आसपास
कुछ गूढ़ इतने कि
मेरे अंदर स्थापित त्रैलोक्य के
सारे पट खुलवा दे ..
और उत्तर अपने साथ
अनंत प्रश्नों से सज्जित
उत्तरीय लिए - स्वयं एक प्रश्न सा प्रकट हो
और निर्णय मेरे विवेक पर
कि इसे प्रश्न के रूप में स्वीकार करूँ
अथवा उत्तर मान संतुष्ट हो जाऊँ !
एक चिरस्थाई प्रश्न तत्पर दिखाई देता है..
आख्यातित करने को,मेरे जीवन का गणित ..
कि मेरी प्रत्येक श्वास के साथ
एक पल मेरे जीवन में जुड़ा है कि घटा है !
वो एक पल मेरी आयु में,
मिला है या कम हुआ है !
मेरी श्वासों की गणना बढ़ी है,
या घटी है मैनें जीवन जिया है,
या ख़त्म किया है !शेष क्या है -
जीवन या मृत्यु !
हे प्रश्न ! तुम वासुकि बन
मेरे मन सागर में मंथन कर
व्यग्रता का विष उत्पन्न करते हो ।
देखो, ये मंथन रुके ना....
ये चलता रहे तब तक,
जब तक ज्ञान का अमृतघट
ना निकल आये और मुझे प्राप्त हो शान्ति।
रचना सरन,4B मणि आंगन.
23.U.A.K.Sarani
न्यू अलीपुर,कोलकाता-प.बंगाल
8961540135
बहुत ही सुंदर रचना है
ReplyDeleteWell done rachu nice blog👍👏 rockstar Rach...
ReplyDeleteअद्भुत सृजन
ReplyDelete