कविता ॥ संदेह ॥

 कविता ॥ संदेह ॥


रचना _ उदय किशोर साह

मो० पौ० जयपुर जिला बाँका बिहार


संदेह की खेती अति डरावनी

जो मन में जड़ लेता है गाँठ

सब कुछ बिखर जाता है भाई

टुट जाता है घर परिवार


संदेह को मन में जगह मत देना

संदेह की बीमारी घातक है

संदेह को दूर सदा ही रखना

शक अपनों के लिये भारी है


पति पत्नी के बीच जब भी पनपता

संवध मे दीवार पड़ जाता है

इस लत को घर में कभी ना लाना

खुशी रूठ कर चल देता है


शक की जड़ जहरीली होती

शक में ना दो खाद पानी

शक की फसल जहर फलता है

ना कर शक की खेती जॉनी


संदेह दुश्मनी को बुलाता है

घर में महाभारत कराता है

लाभ अपराधी जब पाता है

कानून से भी छुट जाता है


संदेह से मत करना तुँ यारी

संदेह जग में है अति ही भारी

संदेह घर को उजाड़ देता है

गाँव जवार बिगाड़ कर जाता है।


उदय किशोर साह

मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार

9546115088

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