कविता ॥ मंझधार ॥
कविता ॥ मंझधार ॥
रचना - उदय किशोर साह
मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार
मंझधार में ना छोड़ना हमको
तेरी मेरी ये प्रीत पुरानी है
तुँ मेरी साँसों की है खुशबू
हम तेरी माथे की बिन्दी हैं
मंझधार में ना छोड़ना हमको
अपनी यह मधुर प्रेम कहानी है
तुँ मेरे जीवन की है बगिया
हम तेरी गुलशन की माली हैं
मंझधार में ना छोड़ना हमको
जनम जनम के हम साथी हैं
तुँ मेरी प्यार की जलती दीपक
हम तेरे प्यार की बाती हैं
मंझधार में ना छोड़ना हमको
एक ही पथ के दो राही हैं
जन्मों जन्मों का वादा है अपनी
जनम जनम की प्रेम निशानी है
मंझधार में ना छोड़ना हमको
मंजनूँ सा प्रेम दीवानें है
तुँ मेरी मुमताज में तेरी शाहजहाँ
मेरी गुलशन की तुँ रात रानी है।
उदय किशोर साह
मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार
9546115088
Comments
Post a Comment