शीर्षक -मैं नारी हूँ

 शीर्षक -मैं नारी हूँ 



मैं नारी हूँ...... 

मैं गृहलक्ष्मी, 

मैं अन्नपूर्णा हूँ,

मैं घर को सँवारती,

मैं घर को बनाती हूँ

मैं रोज़ अपनों के लिए जीती हूँ, 

मैं रोज़ अपनों के लिए मरने को तैयार रहती हूँ मैं नारी हूँ.... 

मैं ग़म को भी हँसी में बदलना जानती हूँ।

मैं रेगिस्तान में भी फूल खिला सकती हूँ

मैं वो हूँ जो दो घर की रखवाली करती हूँ

मैं सभ्यता और संस्कृति की वाहक हूँ

मैं नारी हूँ.... 

मैं रोशनी फैलाने वाली, 

मैं अँधेरा मिटाने वाली हूँ,

 मैं शक्ति का रूप हूँ, 

मैं सरस्वती का स्वरूप हूँ। 

मैं नारी हूँ.... 

मैं सबका कल्याण करने वाली कल्याणी हूँ, 

मैं नारायणी हूँ, 

मैं पाप का नाश करने वाली पापनाशनी हूँ, 

मैं भय का हरण करने वाली भयहारिणी हूँ, 

मैं नारी हूँ.... 

मैं किसी की माँ, 

मैं किसी की बहन, 

मैं किसी की बेटी,

 मैं किसी की पत्नी हूँ,

 मैं नारी हूँ..... 

शरीर है एक परन्तु रूप मेरे हैं अनेक।


डॉ जानकी झा

अध्यापिका, कवयित्री

कटक, ओडिशा

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