महेन्द्र कुमार सिंह साहित्यिक नाम महेन्द्र सिंह राज ग्राम व पोस्ट मैढी़,थाना सैय्यदराजा जनपद चन्दौली में 1 अक्टूबर 1963 को स्व. श्री राजकुमार सिंह व स्व. विंध्याचली सिंह के द्वितीय संतान के रूप में मध्यम परिवार में अवतरित हुआ।

 मैं महेन्द्र कुमार सिंह साहित्यिक नाम महेन्द्र सिंह राज ग्राम व पोस्ट मैढी़,थाना सैय्यदराजा जनपद चन्दौली में 1 अक्टूबर 1963 को स्व. श्री राजकुमार सिंह व स्व. विंध्याचली सिंह के द्वितीय संतान के रूप में मध्यम परिवार में अवतरित हुआ।


चूंकि पिताजी समेत तीन भाइयों का संयुक्त परिवार था काफी बड़ा था और कमोबेश आज भी है इसलिए हर रिश्ते को बखूबी निभाने का अवसर और अनुभव दोनों प्राप्त हुआ। बड़े पिताजी स्व, श्री शिवकुमार सिंह एक सज्जन होने के साथ साथ सुलेखक और अच्छे व्यवस्थापक तथा दयालु प्रवृत्ति के रहे सन् 1986 में उनके निधन के बाद परिवार की जिम्मेदारी प्रधानाध्यापक चाचा श्री फौजदार सिंह जी पर आ गई जिसको उन्होंने बखूबी निभाया और आज भी निभा रहे हैं। हमारे पिता विशुद्ध  किसान रहे। 1जून सन 1982 में कलावती सिंह के साथ परिणय सूत्र में बंधकर सन 1984 में एक पुत्री प्रियंका और 1992 में पुत्र अम्बरीष का पिता बना, पुत्री की शादी एक रईस घराने में विनोद सिंह  के साथ हो चुकी है और बेटे की भी पूजा सिंह के साथ जो बीटेक इंजीनियर है।और आज हमारा पूरा संयुक्त 26 सदस्यों का परिवार अग्रज आई आई टी इंजीनियर भूतपूर्व जी. एम उ. प्र. सीमेण्ट कार्पोरेशन श्री राजधनी सिंह जी के नेतृत्व में फल फूल रहा है।और हमें गर्व है कि आज भी हम  संयुक्त परिवार के सदस्य हैं। 

उतरती चढ़ती परिस्थितियों में  हमने स्नातक और इंजीनियरिंग डिप्लोमा की पढ़ाई किया और सम्प्रति मैं आदित्य विरला समूह में कार्यरत हूं। 

साहित्यिक यात्रा

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 -विज्ञान व इंजीनियरिंग का विद्यार्थी  होने के बावजूद भी मेरी रुचि हिन्दी साहित्य में प्रारम्भ से ही थी और आज भी है मैंंने अपने द्वारा लिखित 'वीर अभिमन्यु' नाटक अपने नेतृत्व में गांव में अभिनीत कराया जब मैं इग्यारहवीं का छात्र था और मैं अपनी पहली कविता  'मधुर  मिलन' लिखा जब मैं दसवीं का छात्र था दुर्भाग्य वश आज अनुपलब्ध है उसकी अंतिम पंक्ति आज भी याद है आप लोग भी आनन्द लीजिए-


इस कानन में आज मानो, 

पुष्पों का खिलन है। 

बहुत दिनों से बिछुडे़ प्रियतम 

प्रेयसी का मधुर मिलन है।। 


और पहली कहानी 'बिन घरनी घर भूत का डेरा' लिखा जो अनुपलब्ध है। 


कालान्तर में  व्यस्तता के कारण छूट गया।दिसम्बर 2019 में 'कविताएं डा.अंशू के साथ 'की ऐडमिन डा. अंशू जी के प्रोत्साहन और भूतपूर्व आई ए एस श्री हरिकान्त त्रिपाठी जी के नेतृत्व में लिखना प्रारम्भ किया जो कमोबेश अनवरत जारी है। 

मेरी पहली और चर्चित कहानी 'हृदय परिवर्तन' कई पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित है, कुछ लेख और संस्मरण  भी प्रकाशित  हैं। मेरी बहुत सी  छंद मुक्त और छंदबद्ध रचनाएं भी विभिन्न  पत्र पत्रिकाओं में  प्रकाशित हैं यथा -


नारी की परिभाषा, श्रद्धा का सिंदूर, कृष्णा  तुम  तलवार  उठा लो, बेटी, हम गीत खुशी के गाएं कैसे, अबकी बार दीवाली में, प्रकृति  से सीख, नहीं चाहिए पुरस्कार,पिता आदि सैकड़ों। कई

 पोर्टलों पर भी रचनाएं प्रकाशित हैं। विभिन्न साहित्यिक मंचों से शतकों सम्मान पत्र भी मिले हैं समय समय पर प्रसिद्ध साहित्यकार श्री सुधीर श्रीवास्तव जी अंकुर जी, राजकुमार वर्मा जी, आदि साहित्य कार वन्धुओं से प्रेरणा मिलती रहती है लेकिन सैकडों रचनाओं के बाद भी मैं अपने को कवि नहीं मानता,पूर्णत्व नहीं, सीखने की लालसा। 

अपनी ही एक रचना से -


न मैं कवि हूं न गायक हूं,

साहित्य सुधा परिचायक हूं। 


और भी -

ये मेरे मन का उद्गार,

नहीं चाहिए पुरस्कार।


मेरा मानना है कि साहित्य समाज का दर्पण है, दर्पण ऐसा होना चाहिए जिसमें  अक्स साफ नजर आए, रचनाएं ऐसी होनी चाहिए  जो समाज को सही दिशा दे सके, सही दशा में  रख सके कलमकार अपनी भूमिका का सही निर्वहन करें भगवान से यही प्रार्थना है। धन्यवाद।।

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