किताबें ======

 किताबें

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किताबों का क्या?

कामिक्स भी अब

वीरान सा होने लगा है,

मोबाइल के बोझ से दबने लगा है।

माता पिता भी

किताबों से दूर हो रहे हैं

बच्चे भी इसीलिए

मजबूर हो रहे हैं।

अब तो नन्हें बच्चों के लिए

मोबाइल ही खाना दाना हो गया है।

किताबों का दुश्मन

जमाना हो गया है।

मम्मी पापा बुक स्टाल कहाँ जाते हैं,

बस बच्चे के लिए भी

मोबाइल ले आते हैं।

रोज रोज के झंझट से

मुक्ति पा जाते हैं।

खुद कामिक्स से बचकर

व्हाट्सएप, टिवटर, इंस्टाग्राम में

उलझ जाते हैं।

किताबों से सभी

दूर हो रहे हैं,

मगर मोबाइल के चलते

तमाम रोगों से

भरपूर हो रहे हैं।

मगर

किताबें कभी मर नहीं सकती,

अपनी फितरत नहीं बदल सकतीं।

किताबों का अपना उसूल है,

आदमी की कितनी बड़ी भूल है

लाख भागता है,

पर कहाँ बच पाता है।

सोशल मीडिया हावी हो रहा है

पर किताबों पर कितना भारी

हो पा रहा है।

किसी का भी किताबों के बिना

काम कहाँ चल पाता,

किताबों के बिना जीवन

कहाँ कितना गढ़ पाता?

🖋सुधीर श्रीवास्तव

        गोण्डा, उ.प्र.

    8115285921

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