शीर्षक-कन्या भ्रूण हत्या



शीर्षक-कन्या भ्रूण हत्या 



कोमल काया पल पल करती है चीत्कार,

मारो  मत  मुझको  मैं जग का हूं श्रृंगार।

मेरे  बिन  गतिमान   प्रकृति  कैसे  होगी,

वसुधा   पर  पहचान   तेरी  कैसे  होगी।

करो   तपस्या   ईश्वर  से  मांगो  वरदान,

मेरे  बिन  गतिशील   बने  सारा  जहान।

मैं रथ का एक चक्र बनी जीवन आधार,

मारो मत  मुझको  मैं जग  का हूं श्रृंगार।

कोमल काया...........

मैं ही  फल और  मैं ही बीज हूं वृक्षों का,

मैं ही  मिट्टी  उपजे  उपवन  जीवन  का।

मैंने  ही  तो जल  विप्लव  से बचाया था,

मैंने ही तो  साथ  मनु  का  निभाया  था।

होता   मेरा   तिरस्कार   फिर   बारम्बार,

मारो  मत  मुझको मैं  जग का हूं श्रृंगार।

कोमल काया.........

मैं हूं  वह  उपहार  ईश  से  प्रथम  मिला,

मैं प्रकाश जिससे आलोकित जग हुआ।

मैं ही हूं  वह शक्ति  समाहित  जग सारा,

मेरे ही आंचल में पलता  एक एक तारा।

फिर मुझे  जीने  का क्यों नहीं अधिकार,

मारो मत  मुझको  मैं जग का  हूं श्रृंगार।

कोमल काया.........


सीमा मिश्रा,वरिष्ठ गीतकार कवयित्री व 

शिक्षिका,स्वतंत्र लेखिका व स्तम्भकार,

उ०प्रा०वि०काजीखेड़ा,वि0ख0-खजुहा,

जनपद-फतेहपुर,उत्तर प्रदेश 7376267290

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