शीर्षक-कैसे आज गीत मै लिख दूं
शीर्षक-कैसे आज गीत मै लिख दूं
आज लिखूं मैं रूदन की पंक्ति,
कैसे आज गीत मै लिख दूं।
हा हाकार मचा जग में है,
कैसे आज प्रीत मै लिख दूं।
नेह के सारे रिश्ते झूठे,
सबसे कैसे भाग्य ए रूठे।
अंत समय भी साथ न कोई,
क्यों प्रेम के धागे टूटे।
हार रहा है जब जग सारा,
इसमें कैसे जीत मै लिख दूं।
बचा नहीं है साथी सहारा,
हर मानव है समय का मारा।
जो प्रकृति मां बनकर पाली,
आज उसी प्रकृति ने मारा।
बहते अश्रु कि पंक्ति में,
कैसे सुख की रित मै लिख दूं।
ना गंगाजल ना तुलसीदल,
अंत समय में मानव विहवल।
राम नाम अब सत्य भी झूठा,
कैसे निकले मुश्किल का हल।
ऐसी विषम वेदना मन में,
कैसे भला मनमीत मै लिख दूं।
दशा देख जन नैन है निर्झर,
मन दुखी है निकले ना स्वर।
किसे पुकारूं , किसे बुलाऊं,
रोक सके जो प्रकृति का कहर।
ऐसे समय की विकट मार में,
कैसे प्रेम प्रीत मै लिख दूं।
धीरज भी ना बधाया जाता,
देखकर दुःखको कलेजा आता।
मन अशांत, हृदय व्याकुल है,
ईश्वर कहां गया तेरा नाता।
कब से पुकारे राम -राम सब,
कैसे तुम्हें मनमीत में लिख दूं।
हा हाकार मचा जग में है,
कैसे आज प्रीत में लिख दूं।
कामिनी मिश्रा,वरिष्ठ गीतकार
कवयित्री व शिक्षिका,प्रा0वि0
लालमन खेड़ा,बीघापुर-उन्नाव,
उत्तर प्रदेश
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