कविता ॥ कालचक्र ॥

 कविता ॥ कालचक्र ॥


स्चना _ उदय किशोर साह

मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार

9546115088


जो थे नसीब वाले वो बदनसीब हो गये

जो बदनसीब थे वो आज खुशनसीब हो गये

समयगति ने ऐसी चाल चली सब कुछ बदल गया

कल तक जो गर्दिश में थे वो सितारे चमक गये


कल तक जो था जमीन पर वो नभ पे उड़ने लगे

आकाश में चमकने वाले पाताल में बसाने लगे

जिनका कोई वजूद ना था उनका किस्मत बदल गया

वो आज राजनीति में आ वजीर बन बदल गये


झुठे के काँधे पे सच्चाई की मौत हो गई

बेईमानों के ऑचल में ईमान लुप्त हो गई

समय ने वक्त का ऐसा पासा पलट दिया

अब चोर उचक्के गॉव के नजीर बन गये


कल तक जिनसे नफरत थी वो माहताब बन गये

दौलत के अन्धे का भी अब मिजाज बदल गये

घर घर में नफरत की अब दीवार खड़ी हो गई

दौलत के घर में आज रिश्ते बेनकाब हो गई



उदय किशोर साह

मो० पो० जयपुर जिला बाँका विहार

9546115088

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