शीर्षक *आशा*

 शीर्षक *आशा*



तुम   तो   मां  की   आशा,

और  पिता  की  जान  हो।

अपने    भाई  - बहन  का,

तुम     तो    अरमान    हो।

क्यों  एक दुष्ट  के  खातिर,

हमें  छोड़  कर  जाती  हो।

इतने सालों  प्यार से पाला,

यह  क्यों  भूल  जाती  हो।

मर्यादा को जब  कोई तोड़े,

तुम भी  काली  बन जाना।

कोई जुल्म चुपचाप न सहना,

न अग्नि में तुम  जल जाना।

हर जुल्म  जो  सहती  जाए,

कमजोर नहीं है  अब  नारी।

अपनी जिद में जब आ जाए,

यमराज   से   भी  न   हारी।

मरकर   अपनी   बहनों  को,

कायरता का सन्देश जो दोगी।

दहेज के खातिर  फिर  क्या,

कोई बेटीको तुम मरने दोगी।

सबक  सिखा उन  दुष्टों  को,

नई   मिसाल     बनाना   है।

दहेज की  अग्नि  में  जलती,

हर    बेटी   को   बचाना  है।



रचना- शहनाज़ बानो, स०अ०

उच्च प्राथमिक विद्यालय-भौंरी

चित्रकूट,उ० प्र०

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